Tuesday, 28 October 2025
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Tuesday, 7 October 2025
कार्तिक मास में कौन सा त्यौहार मनाया जाता है? कार्तिक महीने में किसकी पूजा की जाती है? 2025 में करवा चौथ, छठपर्व , दीपावली, कब है?
हिंदू धर्म में कार्तिक माह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक माह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। यही वह महीना होता है जब विष्णु जी योग निद्रा से जागते हैं। इसके साथ ही चातुर्मास समाप्त हो जाता है।
पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक मास 8 अक्टूबर 2025 से शुरू होकर 5 नवंबर 2025 तक रहेगा।
कार्तिक मास के दौरान कई बड़े त्यौहार जैसे करवा चौथ, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज और छठ पर्व इत्यादि मनाए जाते हैं।
10 अक्टूबर :- को करवा चौथ और वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है।
सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का त्योहार आने का बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस दिन निर्जला व्रत और करवा माता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार करवा चौथ व्रत करने से पति-पत्नी के रिश्ते मजबूत होते हैं।
इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है और वैवाहिक जीवन सदैव खुशहाल रहता है। साथ ही पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता आती है।
कार्तिक मास में पड़ने वाले दिवाली के पंचपर्व का त्योहार:-
दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक चलता है।
धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है।
धनतेरस 2025
इस साल, 18 अक्टूबर को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी. इसलिए, धनतेरस का पर्व शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को ही मनाया जाएगा. धनतेरस के दिन संध्या काल मे धन्वंतरि देवता, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा आराधना की जाती है.
इस दिन धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 07:16 से लेकर 08:20 बजे तक रहेगा. इस दिन भगवान कुबेर के साथ भगवान धन्वंतरि की विशेष रूप से पूजा की जाती है, ताकि पूरे साल सुख-सौभाग्य और आरोग्य बना रहे. धनतेरस के दिन नये समान खरीदने की भी परंपरा है.
नरक चतुर्दशी 2025
दिवाली के पंचपर्वों में दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का होता है, जिसे लोग छोटी दिवाली भी कहते हैं. यह पर्व उत्तर भारत में हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन अर्धरात्रि में मां अंजना के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ था.
हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन मुख्य द्वार पर चौमुखा दीया जलाने से नर्क से मुक्ति मिलती है. पंचांग के अनुसार यह पर्व इस साल 19 अक्टूबर 2025, रविवार को मनाया जाएगा. इस दिन पितरों की विशेष पूजा भी की जाती है.
दिवाली 2025
दिवाली या फिर कहें दीपावली मुख्य रूप से दीपों का महापर्व है, जिसे जलाने से अंधकार दूर होता है. यह पर्व भगवान श्री गणेश के साथ धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करने के लिए जाना जाता है. हालांकि इसी दिन मां काली और कुबेर देवता की भी पूजा होती है. दीपावली का पावन पर्व इस साल 20 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाया जाएगा.
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त - लक्ष्मी पूजा मुहूर्त-
प्रदोष काल- शाम 5 बजकर 33 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक
वृषभ काल- शाम 6 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 53 मिनट तक
निशिता काल का मुहूर्त – रात 11:41 से 21 अक्टूबर को सुबह 12:31 तक
दीपावली को सुबह से शाम तक स्थिर लग्न ( वृषभ लग्न,सिंह लग्न, वृश्चिक लग्न और कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करना अत्यंत शुभ माना गया है ।
गोवर्धन पूजा 2025
दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा का पर्व इस साल 22 अक्टूबर 2025, बुधवार के दिन मनाया जाएगा. इसे अन्नकूट का पर्व भी कहते हैं. हिंदू धर्म से जुड़े लोग इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत आकृति बनाकर उनकी विशेष पूजा करते हैं. गोवर्धन देवता की पूाज के लिए सुबह 06 बजकर 26 मिनट से लेकर 08 बजकर 42 मिनट तक का समय रहेगा. वहीं शाम के समय इसी पूजा को आप दोपहर 03 बजकर 29 मिनट से लेकर 05 बजकर 44 मिनट तक कर सकेंगे .
भाई दूज 2025
23 अक्टूबर को भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा का पर्व मनाया जाएगा।
दिवाली के पंचपर्व में आखिरी पर्व भाईदूज का होता है. इस दिन बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाकर उनकी सफलता और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. भाई और बहन के स्नेह से जुड़ा भाईदूज का पर्व इस साल 23 अक्टूबर 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा. इस दिन भाई को टीका करने का शुभ मुहूर्त दोपहर में 01 बजकर 13 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक रहेगा. इस दिन यमुना में स्नान करने का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है.
छठ पर्व:-
25 अक्टूबर को विनायक चतुर्थी है। यह पर्व प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से छठ पर्व की शुरुआत होगी। व्रती नहाय खाय से व्रत की शुरुआत करेंगी। 28 अक्टूबर को सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाएगा।
30 अक्टूबर को गोपाष्टमी है।
31 अक्टूबर को अक्षय नवमी है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।
01 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इस दिन चातुर्मास का समापन होगा।
02 नवंबर को तुलसी विवाह है। इस दिन देवी मां तुलसी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
03 नवंबर को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत है। इस शुभ अवसर पर देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है।
05 नवंबर को देव दीवाली है। यह पर्व हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है।
कार्तिक मास 2025 में दीपदान ( तुलसी विवाह)का विशेष महत्व
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह मनाया जाता है। इस त्योहार को जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां तुलसी के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर तुलसी विवाह कराने से जीवन में आने वाले सभी तरह के संकट दूर होते है। साथ ही मां तुलसी की कृपा प्राप्त होती है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 02 नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 03 नवंबर को सुबह 05 बजकर 07 मिनट पर होगी। ऐसे में 02 नवंबर को तुलसी विवाह मनाया जाएगा।
कार्तिक मास को दीपदान का महीना भी कहा जाता है। इस दौरान रोज सुबह और शाम तुलसी के पौधे तथा मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना बेहद शुभ माना गया है। तुलसी जी की पूजा करने और उनकी परिक्रमा करने से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति आती है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने दीपदान करने से मां लक्ष्मी बेहद प्रसन्न होती है।
कार्तिक मास के नियम (Kartik Maas 2025 Rules)
इस पवित्र मास में भगवान विष्णु और कृष्ण के मंत्रों का अधिक से अधिक जप करना चाहिए।
इसके साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी अत्यंत फलदायी मानी गई है।
लक्ष्मी जी का आशीर्वाद पाने के लिए इस दौरान श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र, लक्ष्मी स्तोत्र और श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
कार्तिक मास श्रीकृष्ण की पूजा के लिए भी सबसे उत्तम माना गया है।
कार्तिक मास को दीपदान का महीना भी कहा जाता है। इस दौरान नियमित रूप से तुलसी के पौधे तथा मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
मान्यता है कि इस महीने में गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से विशेष पुण्य मिलता है।
आचार्य राजेश कुमार (www.divyansh jyotish kendra)
Thursday, 3 April 2025
राहु करेंगे शनि के घर में प्रवेश , किन राशि वालों के लिए होगा लाभकारी:-
राहु करेंगे शनि के घर में प्रवेश , किन राशि वालों के लिए होगा लाभकारी:-
हम सभी जानते हैं कि राहु एक पापी और छाया ग्रह है। ये एक ऐसा ग्रह माना जाता है, जो हमेशा उल्टी गति से चलता है। राहु एक राशि में करीब 18 माह तक रहते हैं। बता दें कि राहु महाराज पिछले काफी समय से गुरु बृहस्पति के स्वामित्व वाली मीन राशि में विराजमान है। वहीं 18 मई 2025 को शाम 5:08 बजे पर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। राहु के कुंभ राशि में आने से कुछ राशि के जातकों को लाभ मिलेगा, तो कुछ राशियों को संभलकर रहने की जरूरत है।
मेष राशि
मेष राशि के जातकों के लिए राहु का कुंभ राशि में जाना अनुकूल साबित हो सकता है। इस राशि के एकादश भाव में राहु गोचर करेंगे। ऐसे में इस राशि के जातकों की कई इच्छाएं पूरी हो सकती है। लंबे समय से रुका काम पूरे होने के साथ-साथ हर क्षेत्र में सफलता पा सकते हैं। आपका जीवन पटरियों पर आ सकता है। करियर के क्षेत्र में भी काफी अधिक लाभ पड़ने वाला है। पदोन्नति के साथ वेतन में वृद्धि हो सकती है। राहु महाराज आपकी आमदनी में तेजी से वृद्धि कर सकते हैं, जिससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। समाज में मान-सम्मान की वृद्धि हो सकती है।
कन्या राशि
इस राशि के जातकों के लिए राहु का कुंभ राशि में जाना अनुकूल साबित हो सकता है। इस राशि में राहु छठे भाव में रहने वाले हैं। जीवन की कई समस्याएं कम हो सकती है। इसके साथ ही आपकी लंबे समय से चली आ रही परेशानियां कम हो सकती है। स्वास्थ्य अच्छा रहने वाला है। इसके साथ ही नौकरी करने वाले जातकों को भी लाभ मिल सकता है। लेकिन थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि आपके काम का कोई और क्रेडिट ले सकता है। आर्थिक स्थिति अच्छी रहने वाली है। इसके साथ ही पहले किए गए किसी निवेश में आपको अब अच्छा खासा धन लाभ मिल सकता है।
धनु राशि
इस राशि के जातकों के लिए भी राहु का कुंभ राशि में जाना फलदायी साबित हो सकता है। राहु महाराज तीसरे भाव में प्रवेश करेंगे। ऐसे में इस राशि के जातकों के कई क्षेत्रों से सफलता के द्वार खुल सकते हैं। इसके साथ ही आप कई छोटी-छोटी यात्राएं कर सकते हैं। इससे आपको अच्छा खासा लाभ मिल सकता है। दोस्तों और परिवार का पूरा साथ मिल सकता है, जिससे आप अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो सकते हैं। परिवार के बीच चला आ रहा मतभेद समाप्त हो सकता है। आपका कार्यक्षेत्र में अच्छा समय बीतने वाला है। आपके काम की तारीफ हो सकती है। लेकिन थोड़ा सतर्क रहें, क्योंकि कुछ सहकर्मी आपके लिए गलतफहमियां उत्पन्न कर सकते हैं।
नोट- उपरोक्त प्रतिफल का प्रभाव आपकी दशा अंतर्दशा पर भी निर्भर करेगा ।
आचार्य राजेश कुमार (www.divyanshjyotish.com)
Monday, 31 March 2025
आज माँ दुर्गा के तीसरे रूप "माँ चंद्र घंटा" के दिन शुक्र का राशि परिवर्तन आपके जीवन मे क्या बदलाव करेगा !!
आज माँ दुर्गा के तीसरे रूप "माँ चंद्र घंटा" के दिन शुक्र का राशि परिवर्तन आपके जीवन मे क्या बदलाव करेगा !!
वैदिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार 01 अप्रैल को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही मां चंद्रघंटा के निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। मां चंद्रघंटा की पूजा एवं साधना करने से साधक को मनचाहा वरदान मिलता है। साथ ही आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
ज्योतिषियों की मानें तो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि सुखों के कारक शुक्र देव अपनी चाल बदलेंगे। शुक्र देव की कृपा से कई राशि के जातकों के जीवन में बदलाव देखने को मिलेगा। इससे तीन राशि के जातकों को फायदा होगा। आइए, इन राशियों के बारे में जानते हैं-
शुक्र गोचर 2025
वर्तमान समय में सुखों के कारक शुक्र देव मीन राशि में विराजमान हैं। इस राशि में शुक्र देव 30 मई तक रहेंगे। इसके अगले दिन शुक्र देव राशि परिवर्तन करेंगे। इससे पहले शुक्र देव 1 अप्रैल को नक्षत्र परिवर्तन करेंगे। मंगलवार 01 अप्रैल को शुक्र देव पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गोचर करेंगे।
वृश्चिक राशि
01 अप्रैल को शुक्र देव की चाल बदलने से वृश्चिक राशि के जातकों को सभी क्षेत्रों में सफलता मिलेगी। अचानक से धन लाभ होगा। ऐसा भी हो सकता है कि कहीं रुका हुआ या अटका हुआ धन वापस मिल सकता है। दान-पुण्य में सक्रियता बढ़ेगी। लोगों की मदद के लिए आप आगे रहेंगे। लेखन क्षेत्र में आपकी रूचि बढ़ेगी। सरकारी नौकरी से जुड़े लोगों को बड़ा पद मिल सकता है। सरकार या बड़े अधिकारी से सम्मानित हो सकते हैं। बॉस से शाबाशी मिल सकती है। कुल मिलाकर कहें तो वृश्चिक राशि के जातकों को विशेष लाभ मिलेगा।
कुंभ राशि
शनिदेव के राशि परिवर्तन करने से कुंभ राशि के जातकों पर साढ़ेसाती का अंतिम चरण शुरू हो गया है। इस समय शनिदेव कुंभ राशि के धन भाव में विराजमान हैं। इससे कुंभ राशि के जातकों को धन लाभ हो सकता है। साथ ही फंसा हुआ पैसा वापस मिल सकता है। शुक्र देव की कृपा से सुखों में वृद्धि होगी। खरमास के बाद मांगलिक काम के लिए कपड़े और गहने की खरीदारी कर सकते हैं। पूजा-भक्ति में मन लगेगा। कारोबार से जुड़े लोगों को लाभ मिलेगा। पार्टनर से संबंध मधुर होगा। भूमि और भवन की खरीदारी कर सकते हैं।
मीन राशि
शनिदेव के राशि परिवर्तन करने से मीन राशि के जातकों पर साढ़ेसाती का दूसरा चरण शुरू हो गया है। वहीं, शुक्र देव की कृपा से मीन राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। इस राशि के जातकों पर शुक्र देव की हमेशा कृपा बरसती है। सेहत अच्छी रहेगी। भौतिक सुखों पर धन खर्च कर सकते हैं। वाचाल हो सकते हैं। करियर को नया आयाम मिलेगा। कारोबार में तरक्की और उन्नति के लिए हरी सब्जी और हरे रंग के फल का दान करें। शुक्र देव की कृपा से सुखों में वृद्धि होगी। कोई बड़ी मनोकामना पूरी होगी। आने वाले समय में मायावी ग्रह राहु से भी मुक्ति मिल जाएगी।
आचार्य राजेश कुमार(www.divyanshjyotish.com)
Friday, 28 March 2025
सूर्य ग्रहण
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार 29 मार्च 2025 को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। यह ग्रहण दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। और इस दिन शनि ग्रह भी मीन राशि में प्रवेश लेंगे। साल का पहला सूर्य ग्रहण मीन राशि और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में लगेगा। उत्तराभाद्रपद शनि का नक्षत्र है। शनि और सूर्य में शत्रुता है ऐसे में सूर्य ग्रहण का देश-दुनिया पर क्या प्रभाव होगा,ऐसे में सभी 12 राशियों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
यह ग्रहण व्यक्ति को अपने जीवन में धैर्य रखने की चुनौती दे सकता है। शनि के नक्षत्र में होने के कारण यह संघर्ष और कठिनाइयों वाला समय हो सकता है। हालांकि, यह आत्मनिर्भरता, अनुशासन और स्थिरता को बढ़ावा देने का भी समय है। शनि का प्रभाव मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दबाव डाल सकता है। मानसिक तनाव, थकान और चिंता बढ़ सकती है, इसलिए मानसिक शांति के लिए ध्यान और योग करना फायदेमंद रहेगा।
हालांकि ये सूर्य ग्रहण भारत में नहीं नजर आएगा। इसे मुख्य रूप से यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और अटलांटिक और आर्कटिक महासागरों के क्षेत्रों में देखा जा सकेगा।
मेष राशि
साल का पहला सूर्य ग्रहण मेष राशि वालों के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है। आपको स्वास्थ्य समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं। इस दौरान धन का लेनदेन न करें। आपको किसी नए काम में सोच समझकर हाथ बढ़ाना होगा।
वृषभ राशि
साल का पहला सूर्य ग्रहण आपके लिए सामान्य रहेगा। आपको कहीं पर लाभ, तो कहीं समस्याएं होंगी। रिश्तों में हल्की-फुल्की परेशानियां रहेंगी। आपका कोई पुराना लेनदेन चुकता होगा।
मिथुन राशि
ज्योतिषियों के मुताबिक सूर्य ग्रहण आपके लिए कठिनाइयों भरा रहेगा। आपको सभी कार्यों के प्रति अधिक मेहनत करनी होगी। कोर्ट के मामलों में सावधानी बरतें। सेहत के मामले में भी यह समय थोड़ा कठिन हो सकता है।
कर्क राशि
सूर्य ग्रहण लगने से आपकी मानसिक शांति प्रभावित हो सकती है। आप चीजों में संतुलन बनाए रखने के लिए अनुभवी व्यक्तियों से बात करें। स्वास्थ्य के लिहाज से यह समय थोड़ा चुनौतीपूर्ण है।
सिंह राशि
माना जा रहा है कि, साल का पहला सूर्य ग्रहण आपके लिए शुभ हो सकता है। आपको नौकरी में वित्तीय लाभ होगा। रिश्तों में मधुरता बनी रहेगी। आपके चारों ओर का वातावरण खुशनुमा रहेगा।
कन्या राशि
ग्रहण के प्रभाव से नौकरीपेशा जातकों को नई नौकरी के अच्छे प्रस्ताव मिल सकते हैं। तरक्की के अच्छे संकेत है। समाज में पद-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
तुला राशि
ज्योतिषियों के अनुसार यह समय आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। आपको ग्रहों के प्रभाव से व्यापार में लाभ की प्राप्ति संभव है। आपके कामों में यदि कुछ समस्याएं आ रही थी, तो वह भी दूर होगी। कोई विवाह प्रस्ताव आ सकता है।
वृश्चिक राशि
साल का पहला सूर्य ग्रहण आपके लिए सामान्य है। आपको चीजों में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है। इस दौरान अगर किसी नई नौकरी या यात्रा का अवसर मिले, तो जरूर जाएं।
धनु राशि
सूर्य ग्रहण के दिन शनि भी मीन राशि में गोचर कर रहे है। ऐसे में ये संयोग आपको जीवन की नई दिशा दिखा सकता है। लंबे समय से अटके कार्य पूरे होंगे।
मकर राशि
यह समय मकर राशि वालों के लिए बेहद खास है। आपको सभी क्षेत्रों में मनचाहा परिणाम मिल सकता है। परिवार और रिश्तों में प्यार और विश्वास का संचार होगा।
कुंभ राशि
ग्रहण के प्रभाव से आत्मविश्वास बढ़ेगा। नौकरीपेशा जातकों को नई नौकरी के अच्छे प्रस्ताव मिल सकते हैं। कार्यक्षेत्र में कुछ नया करने का मौका आपको मिलेगा। जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा।
मीन राशि
साल का पहला सूर्य ग्रहण आपकी मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है। आप किसी भी यात्रा को करने से बचें। किसी पर ज्यादा भरोसा करना और जोखिम उठाना नुकसानदायक हो सकता है। तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की समस्याएं बढ़ेंगी।
आचार्य राजेश कुमार ( दिव्यांश ज्योतिष केंद्र)
संपर्क सूत्र-9454320396/7607718546
Tuesday, 25 February 2025
महाशिव रात्रि
महाशिवरात्रि :-
“शिवरात्रि” का अर्थ है “भगवान शिव की महान रात्रि । पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के ही दिन देवाधिदेव और माँ पार्वती जी का विवाह भी हुआ था ।
महाशिवरात्रि का पर्व हिन्दुओं के लिए बहुत महत्व रखता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पड़ती है. शिवरात्रि के दिन भगवान शिव के भक्त पूरे श्रद्धा भाव से उपवास करते हैं. मंदिरों में लोगों की भारी भीड़ होती है. पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 11 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा. इसलिए इस साल यह पर्व 26 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा.
इस दिन रंक हो या राजा सभी बड़ी धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं साथ ही दांपत्य जीवन में प्रेम और सुख शांति बनाए रखने के लिए भी व्रत लाभकारी है।
आज के दिन शिवपूजा अनुष्ठान किन लोगों को जरूर करना चाहिए --
1-जिनकी राहु या शनि की नेगेटिव दशा है ।
2- जिनकी साढ़ेसाती चल रही है ।
3-जिनका विवाह या बच्चे नही हो रहे हैं या जिनके बच्चे लायक नहीं है । जिनका वैवाहिक जीवन ठीक नही है ।
3-जिनके घर मे अशांति या नकारात्मक ऊर्जा रहती है । नौकरी/व्यापार में असफल हैं ।
4-जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं ।
5-जो कोर्ट,कचहरी मुक़दमे में फसे हैं।
मैं आप सभी को आज के दिन शिवलिंग पर दूध,साबुत बेल पत्र,धतूरा फूल और फल,भांग इत्यादि को अर्पित करने की सलाह दूंगा और इसे शिवलिंग पर बारी-बारी अर्पित करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करने को बोलूंगा -
प्रथम महामृतत्यंजय मंत्र तत्पश्चात द्वादस ज्योतिर्लिंग के नाम,तत्पश्चात दो बार महामृतत्यंजय मंत्र अब द्वादस ज्योतिर्लिंग के नाम ,इसके बाद पुनः एक बार महामृतत्यंजय मंत्र ,अब दो बार गायत्री मंत्र बोल कर समाप्त करें ।
कैसे करें अपनी राशि अनुसार रुद्राभिषेक -
1. मेष- शहद और गन्ने का रस
2. वृष- दुग्ध ,दही
3. मिथुन-दूर्वा से
4. कर्क- दुग्ध, शहद
5. सिंह- शहद, गन्ने के रस से
6. कन्या- दूर्वा एवं दही से
7. तुला- दुग्ध, दही
8. वृश्चिक- गन्ने का रस, शहद, दुग्ध
9. धनु- दुग्ध, शहद
10. मकर- गंगा जल में गुड़ डाल कर मीठे रस से
11. कुंभ- दही से
12. मीन- दुग्ध, शहद, गन्ने का रस
आचार्य राजेश कुमार
Tuesday, 4 February 2025
साल 2025 में कब कब लगेगा ग्रहण /किन राशियों को मिलेगा साढ़े साती और ढैया से छुटकारा और किन राशियों पर प्रारम्भ होंगे साढ़ेसाती और ढैया :-
वर्ष 2025 चल रहा है और ग्रहण के लिहाज से बात करें तो इस साल भी कुल 4 ग्रहण लगने वाले हैं। ऐसे में आइए जानते हैं 2025 में कब-कब सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगेगा-
प्रथम सूर्य ग्रहण:-
पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च दिन शनिवार को लगेगा। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की अमावस्या के दिन होगा। भारतीय समय के हिसाब से यह ग्रहण दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर शाम 6 बजकर 13 मिनट तक चलेगा। हालांकि यह एक आंशिक सूर्यग्रहण होगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। इस ग्रहण को उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड, आईस लैंड, उत्तरी अटलांटिक महासागर, पूरे यूरोप और उत्तर-पश्चिमी रूस में देखा जाएगा।
द्वितीय सूर्य ग्रहण:-
साल 2025 का दूसरा सूर्य ग्रहण 21 सितंबर दिन रविवार को अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर लगेगा। यह ग्रहण रात 11 बजे शुरू होगा और देर रात 3 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा। साल का दूसरा और आखिरी ग्रहण न्यूजीलैंड, पूर्वी मेलानेशिया, दक्षिणी पोलिनेशिया व पश्चिमी अंटार्कटिका में दिखाई देगा।
प्रथम चंद्र ग्रहण:-
ज्योतिष के अनुसार, साल 2025 का पहला चंद्र ग्रहण 14 मार्च दिन शुक्रवार को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन लगने वाला है। यह ग्रहण सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर 2 बजकर 18 मिनट पर खत्म होगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और भारत में नजर नहीं आएगा।
द्वितीय चंद्र ग्रहण:-
साल का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 दिन रविवार को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन लगेगा। यह ग्रहण रात 9 बजकर 57 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 23 मिनट तक चलेगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और भारत में इसे देखा जा सकेगा।
सूतक काल का समय :-
ज्योतिष के अनुसार, सूतक काल सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पहले शुरू होता है और चंद्र ग्रहण का सूतक काल 9 घंटे पहले शुरू होता है।
साल के प्रथम सूर्य ग्रहण पर बदलेगी शनि की साढ़ेसाती और ढैया:-
साल का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च 2025 , शनिवार को लगने वाला है। इस दिन शनि अमावस्या भी है। इस दिन शनि देव कुंभ से निकलकर मीन राशि में जाने वाले हैं।
29 मार्च 2025 को इस दिन शनि अमावस्या भी है। शनि अमावस्या के दिन शनिदेव अपनी कुंभ राशि से गुरु की मीन राशि में प्रवेश करेंगे। शनि का यह परिवर्तन कई राशियों के लिए अच्छी खबर लाएगा। दरअसल शनि के राशि बदलने से शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया की स्थिति बदलेगी। शनि के मीन राशि में जाने से मकर राशि पर शनि की साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी। इसके अलावा मेष ऐसी राशि होगी, जिसकी शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी। आपको बता दें कि शनि का परिवर्तन इसलिए भी खास है, क्योंकि इस दिन सूर्य ग्रहण और शनि अमावस्या भी है। इस दिन शनि के उपायों को विधिपूर्वक करने से शनि के दोषों से छुटकारा मिलता है।
किन राशियों को मिलेगा साढ़े साती और ढैया से छुटकारा और किन राशियों पर प्रारम्भ होंगे साढ़ेसाती और ढैया :-
आपको बता दें कि शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव से मकर राशि मुक्त हो जाएगी। अब मेष, कुंभ और मीन राशिपर शनि की साढ़ेसाती रहेगी। शनि की ढैया सिंह और धनु राशि पर प्रारम्भ होगी। ऐसे में कर्क और वृश्चिक राशि पर शनि की ढैया खत्म हो जाएगी। आपको बता दें कि मकर, कर्क और वृश्चिक राशि वालों के लिए किस्मत बदलती दिखेगी। खासकर मकर राशि वालों को इतने समय में शनि जो संघर्ष से सिखा कर गएहै, अब उन्हें उसका लाभ मिलेगा। इन राशियों के जीवन में अब लाभ के योग बनेंगे। कुल मिलाकर इन राशियों के जीवन में परेशानियों पहले की तुलना में धीरे-धीरे कम होने लगेंगी।
साढ़ेसाती और ढैया वाले अमावस्या के दिन करें ये उपाय तो समस्याओं को पार करने में सहूलियत मिलेगी :-
1-अमावस्या वाली रात में काले कपड़े में बराबर मात्रा में काला तिल और काली खड़ी उरद,5 लोहे की कील,5 बिना पत्ते की मूली, कडू तेल शीशी बरिअबरी से रखें तथा एक छोटे से शीशे में लगभग 15 सेकंड अपना चेहरा देखकर शीशे को भी काले कपड़े में रख कर उस कड़े की पोटली बनाकर सिर से सात बार घुमाकर किसी शनि मंदिर में शनि के पुजारी को संकल्पित दान कर के पीपल बृक्ष पर एक कडू तेल दीपक प्रज्ज्वलित करें । यह उपाय सिर्फ एक बार ही करना है ।
अब प्रत्येक शनिवार शाम को पीपल बृक्ष पर एक कडुतेल दीपक में एक एक चुटकी तिल,खड़ी उरद और गुड़ दाल कर प्रज्ज्वलित कर देने से निश्चित रूप में शनि के प्रकोप में कमी आएगी ।
2-यदि कुंडली मे शनि चंद्रमा साथ बैठे हों तो पीपल बृक्ष पर कच्चा दूध भी अर्पित करें तो बेहतर होगा ।
3-यदि साढ़ेसाती लग्न चौथे, सातवें, दशवें और बारहवें भाव मे बने तो उपरोक्त उपाय के साथ छाया दान करना श्रेयस्कर होगा ।
4- घर में प्रत्येक शनिवार ,मंगलवार को सुंदर कांड भी कर या सुन सकते हैं ।
5-घर मे समय - समय पर गंगाजल छिड़के । साफ सफाई रखें । गूगल या लोहबान की धूनी करें ।
6-सबसे अधिक जरूरी है कि किसी भी बिघ्न बाधा के समय धैर्य रखें अन्यथा मुसीबत बढ़ा लेंगे । क्योंकि साढ़ेसाती आपके धैर्य की परीक्षा लेने के लिए आती ही है ।
7- कभी कभी अनाथालय, बेसहारा इंसान या पशु को भोजन वस्त्र इत्यादि का प्रबंध करें ।
आचार्य राजेश कुमार ( www.divyanshjyotish.com)
Saturday, 11 January 2025
मकर संक्रांति-2025
प्रत्येक वर्ष जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करते हैं तब "मकर संक्रांति" त्योहार का आरंभ होता है और इसी दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर यानी मकर रेखा से उत्तर दिशा की तरफ बढ़ना शुरू करते हैं सूर्य के उत्तरायण की तरफ बढ़ने को उत्तरायणी भी कहा जाताहै । शास्त्रों में उत्तरायण सूर्य को अत्यंत शुभ माना जाता है । इसी दिन से दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है और समस्त शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं ।
इस दिन 14 जनवरी 2025 को माघ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है। प्रतिपदा यानी पहली तिथि 15 जनवरी को देर रात 03 बजकर 21 मिनट तक है। वहीं मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक है। जबकि, महापुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से 10 बजकर 48 मिनट तक है।इसके बाद द्वितीया तिथि है।
कुल मिलाकर कहें तो माघ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मकर संक्रांति मनाई जाएगी।
पुष्य नक्षत्र
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सबसे पहले पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक है। इस योग में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ है। इसके बाद पुष्य नक्षत्र का संयोग है। इस नक्षत्र के स्वामी शनिदेव हैं। अत: पुष्य नक्षत्र में काले तिल का दान करने से साधक को शनि की बाधा से मुक्ति मिलेगी।
मकर संक्रांति के दिन देवों के देव महादेव जी का "शिववास" कैलाशपर्वत पर जगत की देवी माँ पार्वती के साथ विराजमान रहेंगे। इस शुभ अवसर पर किसी भी समय भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा कर सकते हैं।
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
इस दिन लोग पवित्र नदियों अथवा घर मे गंगा जल डाल कर में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं. दान पुण्य का अत्यधिक विशेष महत्व है ।
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को खिचड़ी, मूंगफली, दही, चूड़ा, तिल के लड्डू, गर्म कपड़े और अपने क्षमतानुसार धन का दान कर सकते हैं।
सांस्कृतिक रूप से, यह पर्व नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है. इस दिन तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और पतंगें उड़ाई जाती हैं. खगोलीय दृष्टि से, इस दिन सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं.
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व-
• मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है।
• मकर संक्रांति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है।
• इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
• वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
• इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है।
• पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
• इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।
पौराणिक बातें-धार्मिक कारण
• मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं।
• द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था।
• उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है।
• इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं और राजा सगर सहित भगीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था।
• शास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व उपनिषद में भी किया गया है।
घर में ‘धन लक्ष्मी’ के स्थायी निवास हेतु विशेष पूजन-
मकर संक्रांति के दिन या दीपावली के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता 'महालक्ष्मी जी' का पूजन पुराने समय में हिन्दू राजा महाराजा किया करते थे।
सभी मित्र अपने-अपने घरों में सपरिवार इस पूजा को करके मां को श्री यंत्र के रूप में अपने घर में पुनः विराजमान करें। यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अंतर्दशा के लिए लाभप्रद होता है।
माता लक्ष्मी की पूजा करने से 'सहस्त्ररुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी' जी सिद्ध होती हैं।
इस पूजा को सिद्ध करने का समय दिनांक 14 जनवरी 2025 को रात्रि 11.30 बजे से सुबह 02.57 बजे के मध्य है।
आचार्य राजेश कुमार
( www.divyanshjyotish.com )
Sunday, 5 January 2025
गुरू ग्रह को फ़ायर ब्रिग्रेड क्यों कहते हैं और हमारे जीवन मे इनका महत्व :-
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्त ग्रहों का बहुत महत्व है। कुंडली में
ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख का आगमन होता है। नौ
ग्रहों की अपनी-अपनी भूमिका होती है। इससे व्यक्ति के जीवन में होने वाले
उतार-चढ़ाव को देखा जा सकता है। गुरु ग्रह को हम बृहस्पति ग्रह के नाम से
भी जानते हैं। जब कुंडली में गुरु ग्रह सही घर में स्थित होते हैं, तो
जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। गुरु ग्रह जीवन में
सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। सकारात्मक व्यक्ति के जीवन में
हमेशा खुशहाली रहेगी।
कुंडली में गुरु को कैसे मजबूत किया जाए :-
गुरू मुख्य रूप से आध्यात्मिकता को विकसित करने का कारक हैं. तीर्थ
स्थानों तथा मंदिरों, पवित्र नदियों तथा धार्मिक क्रिया कलाप से जुडे
हैं. गुरु ग्रह को अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों जैसे कई
प्रकार के क्षेत्रों में कार्य करने का कारक माना जाता है. गुरु की अन्य
कारक वस्तुओं में पुत्र संतान, जीवन साथी, धन-सम्पति, शैक्षिक गुरु,
बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा,
त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यो, राजसिक सम्मान देखा जा
सकता है.
. गुरू आशावादी बनाते हैं और निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते
हैं. गुरू के अच्छे प्रभाव स्वरुप जातक परिवार को साथ में लेकर चलने की
चाह रखने वाला होता है. गुरु के प्रभाव से व्यक्ति को बैंक, आयकर,
खंजाची, राजस्व, मंदिर, धर्मार्थ संस्थाएं, कानूनी क्षेत्र, जज,
न्यायाल्य, वकील, सम्पादक, प्राचार्य, शिक्षाविद, शेयर बाजार, पूंजीपति,
दार्शनिक, ज्योतिषी, वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता होता है.
गुरु के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल हैं. गुरु के शत्रु ग्रह बुध,
शुक्र हैं, गुरु के साथ शनि सम संबन्ध रखता है. गुरु को मीन व धनु राशि
का स्वामित्व प्राप्त है. गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु है. इस राशि में
गुरु 0 अंश से 10 अंश के मध्य अपने मूलत्रिकोण अंशों पर होते है. गुरु
कर्क राशि में 5 अंश पर होने पर अपनी उच्च राशि अंशों पर होते हैं. गुरु
मकर राशि में 5 अंशों पर नीच राशिस्थ होते हैं, गुरु को पुरुष प्रधान
ग्रह कहा गया है यह उत्तर-पूर्व दिशा के कारक ग्रह हैं.गुरु के सभी शुभ
फल प्राप्त करने के लिए पुखराज रत्न धारण किया जाता है. गुरु का शुभ रंग
पिताम्बरी पीला है. गुरु के शुभ अंक 3, 12, 21 है.
गुरु का बीज मंत्र
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:
गुरु का वैदिक मंत्र
देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम ।
बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम ।।
गुरु का जातक पर प्रभाव:-
गुरु लग्न भाव में बली होकर स्थित हों, या फिर गुरु की धनु या मीन राशि
लग्न भाव में हो, अथवा गुरु की राशियों में से कोई राशि व्यक्ति की जन्म
राशि हो, तो व्यक्ति के रुप-रंग पर गुरु का प्रभाव रहता है. गुरु बुद्धि
को बुद्धिमान, ज्ञान, खुशियां और सभी चीजों की पूर्णता देता है. गुरू का
प्रबल प्रभाव जातक को मीठा खाने वाला तथा विभिन्न प्रकार के पकवानों तथा
व्यंजनों का शौकीन बनाता है. गुरू चर्बी का प्रभाव उत्पन्न करता है इस
कारण गुरू से प्रभावित व्यक्ति मोटा हो सकता है इसके साथ ही व्यक्ति साफ
रंग-रुप, कफ प्रकृति, सुगठित शरीर का होता है.
गुरु के खराब होने पर :-
गुरु कुण्डली में कमजोर हो, या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो नीच का हो
षडबल हीन हो तो व्यक्ति को गाल-ब्लेडर, खून की कमी, शरीर में दर्द,
दिमागी रुप से विचलित, पेट में गडबड, बवासीर, वायु विकार, कान, फेफडों या
नाभी संबन्धित रोग, दिमाग घूमना, बुखार, बदहजमी, हर्निया, मस्तिष्क,
मोतियाबिन्द, बिषाक्त, अण्डाश्य का बढना, बेहोशी जैसे दिक्कतें परेशान कर
सकती हैं. बृहस्पति के बलहीन होने पर जातक को अनेक बिमारियां जैसे
मधुमेह, पित्ताशय से संबधित बिमारियों प्रभावित कर सकती हैं. कुंडली में
गुरू के नीच वक्री या बलहीन होने पर व्यक्ति के शरीर की चर्बी भी बढने
लगती है जिसके कारण वह बहुत मोटा भी हो सकता है. बृहस्पति पर अशुभ राहु
का प्रबल व्यक्ति को आध्यात्मिकता तथा धार्मिक कार्यों दूर ले जाता है
व्यक्ति धर्म तथा आध्यात्मिकता के नाम पर लोगों को धोखा देने वाला हो
सकता है.
गुरु ग्रह के 12 भावो मे फल –
"शनि क्षेत्रे यदा जीव : जीव क्षेत्रे यदा शनि :,
स्थान हानि करो जीव: स्थानवृद्धि करो शनि: ||
अर्थात - गुरु के क्षेत्र में शनि हो और शनि के क्षेत्र में गुरु हो, तब
गुरु उस स्थान की हानि करता है और शनि उस स्थान के फल में वृद्धि करते
हैं। अर्थात गुरु जहां बैठता है वहाँ हानी करता है जबकि उसकी दृष्टि
जहां भी पड़ती है वहाँ की नकारात्मकता को जड़ से खत्म करता है । इसीलिए इसे
फ़ायर ब्रिग्रेड भी कहते हैं ।
किन्तु फिर भी, ध्यान रखें, हर जगह गुरु हानिकारक नहीं और हर जगह शनि की
स्थिति उस भाव के लिए वृद्धिकारक नहीं होती। क्योंकि फलित ज्योतिष का मूल
सूत्र है -
"भावात भावपतेश्च कारकवशात तत् - तत् फलं योजयेत।"
अर्थात : जिस भाव का विचार करना हो वह भाव, उस भाव में बैठे ग्रह, भावेश
की स्थिति एवं भावकारक की स्थिति के एकत्रित विश्लेषण (Analysis) एवं
संश्लेषण (Synthesis) के आधार पर ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि
संबंधित भाव में बैठे ग्रहों, भावाधिपति एवं भावकारक ग्रह ने सम्मिलित
रूप से उस भाव के संबंध में क्या योजना बना रखी है।
1. लग्न में -
जिस जातक के लग्न में बृहस्पति स्थित होता है, वह जातक दिव्य देह से
युक्त, आभूषणधारी, बुद्धिमान, लंबे शरीर वाला होता है। ऐसा व्यक्ति
धनवान, प्रतिष्ठावान तथा राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।
शरीर कांति के समान, गुणवान, गौर वर्ण, सुंदर वाणी से युक्त, सतोगुणी एवं
कफ प्रकृति वाला होता है। दीर्घायु, सत्कर्मी, पुत्रवान एवं सुखी बनाता
है लग्न का बृहस्पति।
2. द्वितीय भाव में -
जिस जातक के द्वितीय भाव में बृहस्पति होता है, उसकी बुद्धि, उसकी
स्वाभाविक रुचि काव्य-शास्त्र की ओर होती है। द्वितीय भाव वाणी का भी
होता है। इस कारण जातक वाचाल होता है। उसमें अहम की मात्रा बढ़ जाती है।
क्योंकि द्वितीय भाव कुटुंब, वाणी एवं धन का होता है और बृहस्पति इस भाव
का कारक भी है, इस कारण द्वितीय भाव स्थित बृहस्पति, कारक: भावों नाश्यति
के सूत्र के अनुसार, इस भाव के शुभ फलों में कमी ही करता देखा गया है।
धनार्जन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना, वाणी की प्रगल्भता, अथवा बहुत कम
बोलना और परिवार में संतुलन बनाये रखने हेतु उसे प्रयास करने पड़ते हैं।
राजदरबार में वह दंड देने का अधिकारी होता है। अन्य लोग इसका मान-सम्मान
करते हैं। ऐसा जातक शत्रुरहित होता है। आयुर्भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के
कारण वह दीर्घायु और विद्यावान होता है। पाप ग्रह से युक्त होने पर
शिक्षा में रुकावटें आती हैं तथा वह मिथ्याभाषी हो जाता है। दूषित गुरु
से शुभ फलों में कमी आती है और घर के बड़ों से विरोध कराता है।
3. तृतीय भाव में -
जिस जातक के तृतीय भाव में बृहस्पति होता है, वह मित्रों के प्रति कृतघ्न
और सहोदरों का कल्याण करने वाला होता है। वराह मिहिर के अनुसार वह कृपण
होता है। इसी कारण धनवान हो कर भी वह निर्धन के समान परिलक्षित होता है।
परंतु शुभ ग्रहों से युक्त होने पर उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं। पुरुष
राशि में होने पर शिक्षा अपूर्ण रहती है, परंतु विद्यावान प्रतीत होता
है। इस स्थान में स्थित गुरु के जातक के लिए सर्वोत्तम व्यवसाय अध्यापक
का होता है। शिक्षक प्रत्येक स्थिति में गंभीर एवं शांत बने रहते हैं तथा
परिस्थितियों का कुशलतापूर्वक सामना करते हैं।
4. चतुर्थ स्थान में -
जिस जातक के चतुर्थ स्थान में बलवान बृहस्पति होता है, वह देवताओं और
ब्राह्मणों से प्रीति रखता है, राजा से सुख प्राप्त करता है, सुखी,
यशस्वी, बली, धन-वाहनादि से युक्त होता है और पिता को सुखी बनाता है। वह
सुहृदय एवं मेधावी होता है। इस भाव में अकेला गुरू पूर्वजों से संपत्ति
प्राप्त कराता है।
5. पंचम स्थान में -
जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान,
तर्कशील, श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूजित होता है। धनु एवं मीन राशि
में होने से उसकी कम संतति होती है। कर्क में वह संततिरहित भी देखा गया
है। सभा में तर्कानुकूल उचित बोलने वाला, शुद्धचित तथा विनम्र होता है।
पंचमस्थ गुरु के कारण संतान सुख कम होता है। संतान कम होती है और उससे
सुख भी कम ही मिलता है।
6. छठे स्थान में -
रिपु स्थान, अर्थात जन्म लग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने पर जातक
शत्रुनाशक, युद्धजया होता है एवं मामा से विरोध करता है। स्वयं, माता एवं
मामा के स्वास्थ्य में कमी रहती है। संगीत विद्या में अभिरुचि होती है।
पाप ग्रहों की राशि में होने से शत्रुओं से पीड़ित भी रहता है। गुरु-
चंद्र का योग इस स्थान पर दोष उत्पन्न करता है। यदि गुरु शनि के घर राहु
के साथ स्थित हो, तो रोगों का प्रकोप बना रहता है।इस भाव का गुरु वैद्य,
डाक्टर और अधिवक्ताओं हेतु अशुभ है। इस भाव के गुरु के जातक के बारे में
लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं। पुरुष राशि में गुरु होने पर जुआ,
शराब और वेश्या से प्रेम होता है। इन्हें मधुमेह, बहुमूत्रता, हर्निया
आदि रोग हो सकते हैं। धनेश होने पर पैतृक संपत्ति से वंचित रहना पड़ सकता
है।
7. सप्तम भाव में -
जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक,
बुद्धिमान, सर्वगुणसंपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, धनी, सभा
में भाषण देने में कुशल, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक
और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है। इसकी पत्नी पतिव्रता होती है।
मेष, सिंह, मिथुन एवं धनु में गुरु हो, तो शिक्षा के लिए श्रेष्ठ है, जिस
कारण ऐसा व्यक्ति विद्वान, बुद्धिमान, शिक्षक, प्राध्यापक और न्यायाधीश
हो सकता है।
8. अष्टम भाव में -
जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में बृहस्पति होता है, वह पिता के घर में अधिक
समय तक नहीं रहता। वह कृशकाय और दीर्घायु होता है। द्वितीय भाव पर पूर्ण
दृष्टि होने के कारण धनी होता है। वह कुटुंब से स्नेह रखता है। उसकी वाणी
संयमित होती है। यदि शत्रु राशि में गुरु हो, तो जातक शत्रु से घिरा हुआ,
विवेकहीन, सेवक, निम्न कार्यों में लिप्त रहने वाला और आलसी होता
है।स्वग्रही एवं शुभ राशि में होने पर जातक ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम स्थान
पर मृत्यु को प्राप्त करता है। वह सुखी होता है। बाह्य संबंधों से
लाभान्वित होता है। स्त्री राशि में होने के कारण अशुभ फल और पुरुष राशि
में होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
9. नवम स्थान में -
जिस जातक के नवम स्थान में बृहस्पति हो, उसका घर चार मंजिल का होता है।
धर्म में उसकी आस्था सदैव बनी रहती है। उसपर राजकृपा बनी रहती है, अर्थात
जहां भी नौकरी करेगा, स्वामी की कृपा दृष्टि उसपर बनी रहेगी। वह उसका
स्नेह पात्र होगा। बृहस्पति उसका धर्म पिता होगा। सहोदरों के प्रति वह
समर्पित रहेगा और ऐश्वर्यशाली होगा। उसका भाग्यवान होना अवश्यंभावी है और
वह विद्वान, पुत्रवान, सर्वशास्त्रज्ञ, राजमंत्री एवं विद्वानों का आदर
करने वाला होगा।
10. दसवें भाव में -
जिस जातक के दसवें भाव में बृहस्पति हो, उसके घर पर देव ध्वजा फहराती
रहती है। उसका प्रताप अपने पिता-दादा से कहीं अधिक होता है। उसको संतान
सुख अल्प होता है। वह धनी और यशस्वी, उत्तम आचरण वाला और राजा का प्रिय
होता है। इसे मित्रों का, स्त्री का, कुटुंब का धन और वाहन का पूर्ण सुख
प्राप्त होता है। दशम में रवि हो, तो पिता से,चंद्र हो, तो माता से, बुध
हो, तो मित्र से, मंगल हो, तो शत्रु से, गुरु हो, तो भाई से, शुक्र हो,
तो स्त्री से एवं शनि हो, तो सेवकों से उसे धन प्राप्त होता है।
11. एकादश भाव में -
जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति हो, उसकी धनवान एवं विद्वान भी सभा
में स्तृति करते हैं। वह सोना- चांदी आदि अमूल्य पदार्थों का स्वामी होता
है। वह विद्यावान, निरोगी, चंचल, सुंदर एवं निज स्त्री प्रेमी होता है।
परंतु कारक: भावों नाश्यति, के कारण इस भाव के गुरु के फल सामान्य ही
दृष्टिगोचर होते हैं, अर्थात इनके शुभत्व में कमी आती है।
12. द्वादश भाव में -
जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति हो, तो उसका द्रव्य अच्छे कार्यों
में व्यय होने के पश्चात भी, अभिमानी होने के कारण, उसे यश प्राप्त नहीं
होता है। निर्धन , भाग्यहीन, अल्प संतति वाला और दूसरों को किस प्रकार से
ठगा जाए, सदैव ऐसी चिंताओं में वह लिप्त रहता है। वह रोगी होता है और
अपने कर्मों के द्वारा शत्रु अधिक पैदा कर लेता है। उसके अनुसार यज्ञ आदि
कर्म व्यर्थ और निरर्थक हैं। आयु का मध्य तथा उत्तरार्द्ध अच्छे होते
हंै। इस प्रकार यह अनुभव में आता है कि गुरु कितना ही शुभ ग्रह हो, लेकिन
यदि अशुभ स्थिति में है, तो उसके फलों में शुभत्व की कमी हो जाती है और
अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं और शुभ स्थिति में होने पर गुरु कल्याणकारी
होता है।
आचार्य राजेश कुमार
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