Saturday, 11 January 2025

                          मकर संक्रांति-2025


प्रत्येक वर्ष जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करते हैं तब "मकर संक्रांति" त्योहार का आरंभ होता है और इसी दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर यानी मकर रेखा से उत्तर दिशा की तरफ बढ़ना शुरू करते हैं सूर्य के उत्तरायण की तरफ बढ़ने को उत्तरायणी भी कहा जाताहै । शास्त्रों में उत्तरायण सूर्य को अत्यंत शुभ माना जाता है । इसी दिन से दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है और समस्त शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं ।


इस दिन 14 जनवरी 2025 को माघ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है। प्रतिपदा यानी पहली तिथि 15 जनवरी को देर रात 03 बजकर 21 मिनट तक है।  वहीं मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक है। जबकि, महापुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से 10 बजकर 48 मिनट तक है।इसके बाद द्वितीया तिथि है। 


कुल मिलाकर कहें तो माघ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मकर संक्रांति मनाई जाएगी।


पुष्य नक्षत्र


मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सबसे पहले पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक है। इस योग में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ है। इसके बाद पुष्य नक्षत्र का संयोग है। इस नक्षत्र के स्वामी शनिदेव हैं। अत: पुष्य नक्षत्र में काले तिल का दान करने से साधक को शनि की बाधा से मुक्ति मिलेगी।


मकर संक्रांति के दिन देवों के देव महादेव जी का "शिववास" कैलाशपर्वत पर जगत की देवी माँ पार्वती के साथ विराजमान रहेंगे। इस शुभ अवसर पर किसी भी समय भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा कर सकते हैं।


        माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।


      स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥ 


इस दिन लोग पवित्र नदियों अथवा घर मे गंगा जल डाल कर में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं. दान पुण्य का अत्यधिक विशेष महत्व है ।


मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को खिचड़ी, मूंगफली, दही, चूड़ा, तिल के लड्डू, गर्म कपड़े और अपने क्षमतानुसार धन का दान कर सकते हैं।


सांस्कृतिक रूप से, यह पर्व नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है. इस दिन तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और पतंगें उड़ाई जाती हैं. खगोलीय दृष्टि से, इस दिन सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं.

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व-


•  मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है।


• मकर संक्रांति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है।


• इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।


• वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।


• इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है।


• पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।


 


• इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। 


पौराणिक बातें-धार्मिक कारण


• मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं।


 


• द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था।


 


• उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है।


 


• इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं और राजा सगर सहित भगीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था।


 


• शास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व उपनिषद में भी किया गया है।


घर में ‘धन लक्ष्मी’ के स्थायी निवास हेतु विशेष पूजन-


मकर संक्रांति के दिन या दीपावली के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता 'महालक्ष्मी जी' का पूजन पुराने समय में हिन्दू राजा महाराजा किया करते थे। 



सभी मित्र अपने-अपने घरों में सपरिवार इस पूजा को करके मां को श्री यंत्र के रूप में अपने घर में पुनः विराजमान करें। यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अंतर्दशा के लिए लाभप्रद होता है।


माता लक्ष्मी की पूजा करने से 'सहस्त्ररुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी' जी सिद्ध होती हैं। 


         इस पूजा को सिद्ध करने का समय दिनांक 14 जनवरी 2025 को रात्रि 11.30 बजे से सुबह 02.57 बजे के मध्य  है।


          आचार्य राजेश कुमार

( www.divyanshjyotish.com )


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