Thursday, 22 August 2024

हरियाली,कजरी और हरतालिका तीज कब-कब ,क्यों और पूजा विधि:-

        

साल में इस प्रकार के तीन पर्व आते हैं, जो क्रमशः हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज के नाम से जाने जाते हैं। हर एक पर्व का अपना-अपना महत्व है। 


उक्त तीनो पर्व माँ गौरा पार्वती और देवाधिदेव भगवान शिव के मिलन की ही कथा है । भारतीय महिलाएं अपने अपने पारिवारिक और सामाजिक प्रचलन के अनुसार इन मे से किसी एक तिथि पर उक्त पर्व पर अपने वर के दीर्घायु व सुखमय जीवन एवं कुंवारी कन्याएं अपनी इक्षानुसार वर प्राप्ति के लिए करती हैं ।


   1 - हरियाली तीज:-


      पंचांग के अनुसार, सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 7 अगस्त को हरियाली तीज पड़ी थी । हरियाली तीज को लेकर मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है।


हरियाली तीज 2024 पूजा शुभ मुहूर्त:-

सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि आरंभ- 6 अगस्त 2024 को शाम 7 बजकर 52 मिनट से 

सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि समाप्त- 7 अगस्त 2024 को रात 10 बजकर 5 मिनट पर

हरियाली तीज 2024 तिथि- 7 अगस्त 2024, बुधवार




2-कजरी तीज : -  


  कजरी तीज रक्षाबंधन के तीन दिन बाद मनाई जाती है.

 हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है. कजरी का अर्थ काले रंग से है. इस दौरान आसमान में काली घटा छाई रहती है. इसलिए शास्त्रों में इस शुभ तिथि को कजरी तीज का नाम दिया गया है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के भवानी स्वरूप की पूजा का विधान है.  इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए व्रत करती हैं और पति लंबी उम्र की कामना करती हैं । इन तीनो व्रत में पूजा कथा की विधियां लगभग समान ही हैं ।

कजरी तीज 2024 पूजा शुभ मुहूर्त:-


भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त को शाम 5 बजकर 6 मिनट से प्रारंभ हुई है. इसका समापन 22 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 46 पर होगा. उदिया तिथि के चलते कजरी तीज का व्रत 22 अगस्त दिन गुरुवार को ही रखा जाएगा. 


3-हरतालिका तीज :-


यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होगा। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। 


हरतालिका तीज 2024 पूजा शुभ मुहूर्त:-


काशी पंचांग के मुताबिक इस तिथि की शुरुआत 5 सितंबर 2024 को दोपहर 12:21 पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन 6 सितंबर 2024 को शाम 03:01 पर होगा। अतः उदय तिथि के अनुसार इस साल यह व्रत 06 सितंबर 2024, शुक्रवार को मनाया जाएगा ।

 


उपरोक्त तीनों तिथियों की पौराणिक कथा-


   लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर खातीं और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।


इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उन्हें बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। 


भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।


मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है। 


 विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है, क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन प्रातः 3.30 पर पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। 


इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। तमिलनाडु में इस व्रत को "गौरी हब्बा" के नाम से जाना जाता है। वहां महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद पाने के लिए स्वर्ण गौरी व्रत करती हैं।


सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए ये व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। 


पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।


इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए।


आचार्य राजेश कुमार (divyansh jyotish)



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